हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामनेई से पूछे गए सवाल का जवाब दिया हैं।जो शरई मसाईल में दिलचस्पी रखते हैं,उनके लिए यह बयान किया जा रहा हैं।
सवालःयह जो कहा जाता है कि भले काम के लिए इस्तेख़ारे की ज़रूरत नहीं है तो उन कामों को अंजाम देने के तरीक़े या अंजाम देने के दौरान पेश आने वाले अप्रत्याशित मसलों के तअल्लुक़ से क्या इस्तेख़ारा करना जायज़ है? क्या इस्तेख़ारा ग़ैब के इल्म का ज़रिया समझा जा सकता है या उसे सिर्फ़ अल्लाह ही जानता है?
जवाबः इस्तेख़ारा सिर्फ़ जायज़ व मुबाह काम के सिलसिले में शक व संदेह को दूर करने के लिए किया जाता है, अब चाहे शक व संदेह ख़ुद उस अमल में हो या उसे अंजाम देने के तौर तरीक़े को लेकर हो। इसलिए जिन भले कामों में शक व संदेह की कोई गुंजाइश न हो उसमें इस्तेख़ारे की भी ज़रूरत नहीं है। इसी तरह इस्तेख़ारा इंसान और उसके काम के भविष्य को जानने के लिए नहीं है।